इतिहास
मध्य प्रदेश में भू-अभिलेख और बंदोबस्त विभाग का इतिहास ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से ही समृद्ध है।
-ब्रिटिश काल से पहले: मुगल साम्राज्य और मराठा शासन के तहत भूमि अभिलेखों का रखरखाव गांव के लेखाकार (पटवारी) और राजस्व अधिकारियों (तहसीलदार) द्वारा किया जाता था।
- ब्रिटिश काल (1818-1947):
- स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (1818) और जमींदारी प्रणाली की शुरूआत, जिसके परिणामस्वरूप भूमि अभिलेखों का निर्माण हुआ।
- सर्वेक्षण और बंदोबस्त संचालन 1855 में शुरू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप गांव के नक्शे और भूमि अभिलेख तैयार किए गए।
- मध्य प्रदेश भूमि राजस्व संहिता, 1954 को भूमि राजस्व कानूनों को समेकित करते हुए अधिनियमित किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद (1947-1980 के दशक):
- मध्य प्रदेश सरकार ने भूमि अभिलेखों के आधुनिकीकरण की पहल की, "अधिकारों का अभिलेख" (आरओआर) और "होल्डिंग्स का मानचित्र" (एमओएच) की शुरुआत की।
- भूमि अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण 1980 के दशक में "भूमि अभिलेख कम्प्यूटरीकरण परियोजना" की शुरुआत के साथ शुरू हुआ।
- समकालीन युग (1990 के दशक से वर्तमान तक):
- 2008 में राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (एनएलआरएमपी) का कार्यान्वयन, जिसका उद्देश्य भूमि अभिलेखों को डिजिटल बनाना और एकीकृत करना है।
- भूमि अभिलेखों तक आसान पहुँच के लिए ई-म्यूटेशन, ई-आरओआर और भू-लेख जैसी ऑनलाइन सेवाओं की शुरूआत हुई।
- जीआईएस मैपिंग और ड्रोन तकनीक के उपयोग सहित सटीक भूमि अभिलेखों को अद्यतन और बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास जारी है।
मध्य प्रदेश में भूमि अभिलेख और बंदोबस्त विभाग भूमि अभिलेख प्रबंधन की सटीकता, पहुँच और दक्षता में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार को अपनाते हुए निरंतर विकसित हो रहा है।